राज्य भी सार्वजनिक कानून में परिवार को नहीं मानता था, आज भी परिवार को केवल दीवानी कानून मे मान्यता मिती हुई है। फिर भी, आज तक का समस्त लिखित इतिहास इसी बेतुकी धारणा पर चलता है- और अठारहवीं सदी मे तो इसे एक अनुल्लंघनीय मिद्धान्त मान लिया गया - कि एकनिष्ठ व्यक्तिगत परिवार ही, जो सभ्यता से ज्यादा पुरानी संस्था नहीं है, वह केन्द्र-बिन्दु है, जिसके चारो ओर समाज और राज्य-सत्ता ने धीरे-धीरे स्थायी रूप धारण किया है। मार्क्स ने इस विषय में लिखा है : "श्री प्रोट कृपा करते इस बात को और भी टाक ले कि यूनानियो का विचार गोकि यह था कि उनके गोत्रो का पुराण-कथानो के देवी-देवताओं से जन्म हुअा है, परन्तु वास्तव मे, गोत्र पुराण-कथाओं से, और उनके देवी-देवताओं और अर्ध-देवताओं से अधिक पुराने थे, जिन्हें स्वयं गोत्रों ने ही पैदा किया था। मोर्गन ग्रोट को एक विख्यात और असन्दिग्ध गवाह के रूप मे उद्धृत करना पसन्द करते है। वह आगे बताते है कि एथेंस के प्रत्येक गोत्र का एक नाम होता था, यह संज्ञा उसके ख्यात पूर्वज के नाम से प्राप्त होती थी। वह यह भी बताते है कि सामान्य नियम के अनुसार सोलन के काल के पहले और उसके बाद किसी आदमी के बिन वसीयत किये भर जाने पर उसकी सम्पत्ति उसके गोत्र के सदस्यों (gennétes) को मिलती थी। यदि किसी आदमी की हत्या हो जाती थी तो पहले उसके रिश्तेदारो का, फिर उसके गोत्र के मदस्यों का और अन्त में, उसकी बिरादरी के सदस्यो का यह अधिकार और कर्तव्य होता था कि वे अपराधी पर अदालत में "91 मुकदमा चलायें: 1995 - एथेंस के अति-प्राचीन कानूनो के बारे में हम जो कुछ जानते है, वह सब गोत्रों और बिरादरियों के विभाजन पर आधारित है। "तोतारटंत में पूरे पर ज्ञान में अधूरे कूपमंडूको" ( माक्र्स ) के लिये ममान पूर्वजों से गोत्रों की उत्पत्ति एक ऐसी पहेली बनी हुई है कि वे सिर पटक-पटककर रह गये है, पर उसे समझ नहीं पाये है। चूकि इन लोगो का दावा है कि इस प्रकार के पूर्वज केवल कल्पना की उपज है, इसलिये स्वभावतः वे यह समझाने में पूर्णतया असमर्थ है कि गोत्र कैसे एक दूसरे से अलग तथा भिन्न , और शुरू में पूरी तरह असम्बद्ध परिवारों से विकसित 9--410 १२६
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