पोट की किताव 'यूनान का इतिहास' 89 के अनुसार, एथेस के गोत्र को विशेष रूप से निम्नलिखित तत्त्वों ने एकता के सूत्र में वांध रखा था: १. समान धार्मिक अनुष्ठान , और एक विशेष देवता के सम्मान में पुरोहितो को मिले हुए विशेपाधिकार। यह देवता गोत्र का आदि-पुरुष समझा जाता था और इस हैसियत से उसका एक विशेष गोत्र-नाम होता था। २. गोत्र का एक कब्रिस्तान (इस सम्बन्ध में डेमोस्थेनीज़ का ‘इयुबु- लिडीज' भी देखिये 20 ) । ३. विरासत के पारस्परिक अधिकार । ४. गोत्र के किसी सदस्य के विरुद्ध बल-प्रयोग होने पर एक दूसरे की सहायता, रक्षा और समर्थन करना सबका कर्तव्य । ५. कुछ सूरतों में, विशेषकर बे मां-बाप की लड़कियों और उत्तराधिकारिणियो के मामले में गोत्र के भीतर विवाह करने का पारस्परिक अधिकार और बाध्यता। ६. कम से कम कुछ जगहों पर तो अवश्य ही सामूहिक मिलकियत तथा अपने एक प्रार्कोन (मजिस्ट्रेट) और कोषाध्यक्ष का होना। विरादरी मे, जिसमें कई गोत्र शामिल होते थे, इतनी घनिष्ठता नहीं होती थी। पर यहां भी हम इसी प्रकार के पारस्परिक अधिकार और कर्तव्य पाते हैं। विशेष रूप से यहां भी पूरी बिरादरी सामूहिक रूप से कुछ विशेप धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेती थी और किसी बिरादर के मारे जाने पर उसे उसकी मौत का बदला लेने का अधिकार होता था। इसके अलावा एक क़बीले की सभी बिरादरियां समय-समय पर एक मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता मे कुछ सामूहिक पवित्र अनुष्ठान किया करती थी। यह मजिस्ट्रेट फोलोबेसिलियस (कवायली मजिस्ट्रेट) कहलाता था और उसे कुलीनों ( इयुपैट्रिडीज ) में से चुना जाता था। मोट ने यह लिखा है। मार्स ने इसमें इतना जोड़ दिया है : “यूनानी गोन मे हम साफ़-साफ जांगल लोगों को (मिसाल के लिये इरोक्वा लोगों को) देख सकते है।" कुछ और खोज करने पर यह मूल जांगल रूप मोर भी स्पष्ट रूप में दिखायी पड़ने लगता है। कारण कि यूनानी गोत्र मे ये विशेषताएं और होती है : ७. पितृ-सत्ता के अनुसार वंश का चलना। १२७
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