यही वह पूरा समाज-विधान था जिसके मातहत रहते हुए इरोक्वा लोगो को चार सौ साल से अधिक हो गये थे और आज भी वे उसी के मातहत रहते है। मोर्गन ने इस समाज-विधान का जो वर्णन किया है, उसे मैने यहा काफी विस्तार के साथ दिया है, क्योकि हमें उससे एक ऐसे समाज- संगठन का अध्ययन करने का अवसर मिलता है, जिसमें अभी तक राज्य का अस्तित्व न था। राज्य के लिये सम्बन्धित तमाम लोगो से अलग एक विशेप सार्वजनिक प्राधिकार पूर्वापेक्षित है। इसलिये मारेर ने तब बड़ी सही समझ का परिचय दिया था, जब उन्होने जर्मनों के मार्क-विधान को बुनियादी तौर पर एक शुद्ध सामाजिक संस्था माना था और कहा था कि राज्य से इसमें बुनियादी भेद है, गोकि आगे चलकर यही मोटे तौर पर उसकी बुनियाद वना। अतएव अपनी सभी रचनाओं में मारेर ने इस बात की खोज की है कि मार्को, गावों, जागीरों और कसबो के पुराने विधानों मे से, और उनके साथ-साथ, धीरे-धीरे कैसे सार्वजनिक प्राधिकार का विकास हुआ है । 86 उत्तरी अमरीकी इंडियनों से हमें पता चलता है कि एक कबीला, जो शुरू में संयुक्त था, धीरे-धीरे किस तरह एक विशाल महाद्वीप में फैल गया ; किस प्रकार कवीलों के विभाजन के परिणामस्वरूप जातियां , कबीलो के पूरे समूह बन गये ; किस प्रकार भाषाएं इतनी बदल गयी कि न सिर्फ एक भाषा बोलनेवाला दूसरी भापा को नही समझता था, बल्कि उनकी प्राचीन एकता का प्रत्येक चिह्न गायब हो गया; किस प्रकार इसके साथ-साथ कबीलो के गोत्र भी कई भागों में बंट गये; किस प्रकार पुराने मातृ-गोन विरादरियो के रूप में कायम रहे और किस प्रकार इन सबसे प्राचीन गोत्रों के नाम बहुत दिनो से अलग-अलग और बड़ी दूरी पर रहनेवाले कबीलो मे अब भी पाये जाते है-मिसाल के लिये " और "भेड़िया" नाम के गोन्न अव भी अमरीकी आदिवासियों के अधिकतर कबीलो में मिलते है। ऊपर हमने जिस समाज-विधान का वर्णन किया है, वह आम तौर पर इन सभी कबीलो पर लागू होता है। अन्तर केवल इतना है कि उन मे से बहुत-से कबीले सम्बन्धी कबीलों के महासंघ बनाने की अवस्था तक नहीं पहुंच सके। परन्तु साथ ही हमने यह भी देखा कि जहां एक बार गोत्र को समाज की इकाई मान लिया गया, वहां उस इकाई से गोत्रों, विरादरियों और कबीलो की पूरी व्यवस्था मानो अपने पाप और लाजिमी तौर पर विकमित . भालू" १२१
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