मे , जो बहुत कमजोर हो जाते है, बीच की कड़ी-विरादरी- नहीं होती। अमरीका के इंडियन कबीलों की मुख्य विशेषताएं क्या है ? १. हर कबीले का अपना इलाका और अपना नाम होता था। इस इलाके के अलावा, जहा वस्ती होती थी, हर कबीले के पास काफ़ी क्षेत्र शिकार करने और मछली मारने के लिये होता था। इसके भी आगे बहुत लम्बी-चौड़ी तटस्थ भूमि होती थी जो दूसरे कबीले के इलाके तक चली जाती थी। यदि दो कबीलो की भाषाएं मिलती-जुलती होती थी, तो उनके बोच की यह तटस्थ भूमि विस्तार मे अपेक्षाकृत कम होती थी। जहां दो कबीलो की भापानों में कोई सम्बन्ध नहीं होता था, वहां इस भूमि का विस्तार अपेक्षाकृत अधिक होता था। ऐसी तटस्थ भूमि के उदाहरण है : जर्मनों का सरहदी जंगल ; वह वीरान इलाका जो सीज़र के सुएवी लोगों ने अपने क्षेत्र के चारो पोर बना लिया था; डेनो तथा जर्मनो के बीच का fsarnholt (डेन भाषा मे jarnved, times Danicus); जर्मन तथा स्लाव लोगों के बीच का सैक्सन जंगल और branibor (स्लाव भाषा मे "रक्षा-जंगल"), जिससे ग्रांडनवर्ग (Brandenburg) नाम निकला है। इन प्रधूरी और अस्पष्ट सीमामी से घिरा हुआ यह क्षेत्र कवीले का सामूहिक क्षेत्र होता था जिसे पड़ोस के कबीले मानते थे। यदि कोई उसमें घुसने की कोशिश करता था तो कवीला इस इलाके की रक्षा करता था। सीमानों की मस्पष्टता से प्रायः केवल उसी समय व्यावहारिक कठिनाई पैदा होती थी जब भावादी बहुत बढ़ जाती थी। कबीलों के नाम, मालूम पड़ता है, इतना सोच-समझकर नहीं चुने गये है जितना कि संयोग से पड़ गये है। समय बीतने के साथ-साथ मक्सर यह होता था कि कोई कवीला गुद अपने लिये जिरा नाम का प्रयोग करता था, पड़ोम के कवोले उससे भिन्न कोई नाम उसे दे देते थे। उदा- हरण के लिये, जर्मन लोगों (die Deutschen) का इतिहास में पहला नाम , जिसकी व्यंजना मत्यन्त व्यापक है, अर्थात् "जर्मन" (Germanen) केल्ट लोगों का दिया हुमा है। २. हर पीते को अपनी एक खास योलो होती है। बल्कि सच तो यह है कि करीता और बोली बड़ी हद तर महाविस्तारी होते हैं। प्रमरोग मे उपविभाजन के द्वारा नये प्रवीलों पोर बोलियों का बनना प्रभी हाल ता जारी या, मौर पर भी यह एक्दम बंद नहीं हो गया होगा। जब दो समडोर पीने मिसरर एक हो जाते हैं, तद पापादस्वरूप कभी-कभी ११५
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