सम्पत्ति उतराधिकार में पाना असम्भव था और बच्चे पिता को सम्पत्ति नही पा सकते थे। ५. गोन के सदस्यो का कर्तव्य था कि वे एक दूसरे की मदद और हिफाजत करे, पोर यदि कोई बाहर का पादमी गोत्र के किसी सदस्य को चोट पहुंचा गया हो, तो उसका बदला लेने में खास तौर पर मदद करें। व्यक्ति अपनी सुरक्षा के लिये गोत्र की शक्ति पर निर्भर कर सकता था और करता भी था। जो कोई गोत्र के किसी सदस्य को चोट पहुंचाता था, वह पूरे गोत्र पर चोट करता था। गोत्र के इस रक्त-सम्बन्ध से रक्त- प्रतिशोध के की उत्पत्ति हुई, जिसे इरोक्वा लोग विला शर्त मानते थे। गोत्र के किसी सदस्य को यदि बाहर का कोई आदमी मार डालता था, तो हत व्यक्ति का पूरा गोन खून का बदला खून से लेने के लिये कर्तव्यवस होता था। पहले मध्यस्थता की कोशिश की जाती थी। मारनेवाले गोत्र की परिषद् बैठती थी और हत व्यक्ति के गोन की परिषद् के पास झगड़ा निपटाने के लिये विभिन्न प्रस्ताव भेजती थी। इसका तरीका प्रायः यह होता था कि जो कुछ हो गया, उस पर दुख प्रकट किया जाता था और काफी मूल्यवान् भेंट भेजी जाती थी। यदि भेंट स्वीकार कर ली गयी तो समझा जाता था कि झगड़ा निपट गया। नहीं, तो हत व्यक्ति का गोन अपने एक या एक से अधिक सदस्यो को बदला लेने के लिये नियुक्त करता था, और उनका कर्तव्य होता था कि वे कातिल का पीछा करे और उसे जान से मार डालें। यदि यह काम पूरा कर लिया जाता था तो कातिल के गोत्र को शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं होता था; यह समझा जाता था कि हिसाच पूरा हो गया। ६. गोत्र के पास निश्चित नाम या नामो की निश्चित माला होती है, जिन्हे पूरे कबीले के अन्दर केवल गोन विशेष ही इस्तेमाल कर सकता है। इस प्रकार, किसी व्यक्ति का नाम लेने पर यह भी ज्ञात हो जाता है कि वह किस गोन का सदस्य है। जो गोत्र के नाम का प्रयोग करता है, उसे स्वभावतः गोन के अधिकार भी प्राप्त होते है। ७. गोत्र अजनबियो को अपना सदस्य बना सकता है, योर इस प्रकार उन्हे पूरे कबीले मे शामिल कर सकता है। जो युद्धबंदी जान से नही मारे जाते थे, वे एक गोन द्वारा अपनाये जाकर सेनेका कवीले के सदस्य बन जाते थे और इस प्रकार वे गोन के और बोले के पूरे अधिकार प्राप्त 1 ११०
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