एकसाथ बंधे रखता था। इस नकारात्मक रूप में, वास्तव में वह अत्यन्त सकारात्मक रक्त सम्बन्ध प्रगट हुआ था जिसके कारण इस जन-समुदाय में एकत्रित व्यक्ति एक गोत्र के रूप में गटित थे। इस साधारण सत्य की खोज करके मोर्गन ने पहली बार गोत के असली स्वरूप को प्रगट किया था। तब तक गोत्र को लोगों ने कितना कम समझा था, यह जांगल तथा बर्वर जातियो के इसके पहले के उन वर्णनों को पढ़ने पर मालूम हो जाता है, जिनमे विभिन्न समुदायो को, जो सभी गोत्रीय संगठन के अन्तर्गत थे, बिना सोचे-समझे कवीला, कुटुम्ब और "थुम", आदि नामों से पुकारा गया था। कभी-कभी कहा जाता है कि ऐसे किसी समुदाय के अन्दर विवाह करना मना है। इस प्रकार वह घोर अव्यवस्था पैदा कर दी गयी थी जिसमे मि० मैक-लेनन नेपोलियन को भांति मैदान मे आये और उन्होंने यह फतवा देकर व्यवस्था स्थापित की कि सभी कबीले दो श्रेणियों में बंटे होते है। एक वे कबीले होते है जिनके भीतर विवाह करना मना है ( वहिर्विवाही), और दूसरे वे जिनके अन्दर विवाह करने की इजाजत है (अन्तर्विवाही ) । और इस तरह गड़बड़ी को और भी गड़बड़ करने के बाद मैक-लेनन साहब इस बात की गहरी खोजबीन में व्यस्त हो गये थे कि इन दो बेतुकी श्रेणियों में अधिक पुरानी कौनसी है- अन्तर्विवाही श्रेणी या बहिर्विवाही। रक्त- सम्बन्ध पर आधारित गोत्र का तथा फलतः उसके सदस्यो में विवाह के असम्भव होने का पता लगते ही यह सारी मूर्खता अपने प्राप बन्द हो गयी। स्पष्ट है कि इरोक्वा लोग विकास की जिस अवस्था में है, उस अवस्था में गोत्र के भीतर विवाह करने पर तगा हुमा प्रतिबंध पूरी सख्ती के साथ लागू किया जाता है। ४. मृत व्यक्तियो की सम्पत्ति गोन के बाकी मदस्यो में वांट दी जाती थी क्योकि हर हालत मे सम्पत्ति को गोत्र के भीतर ही रहना था। चूंकि इरोक्वानों का कोई भी सदस्य मरने पर नगण्य सम्पत्ति ही छोड़ जा सकता था, इसलिये वह गोन के भीतर उसके सबसे निकट के सम्बन्धियो में बांट दी जाती थी। जब कोई पुरुप मरता था तो उसकी सम्पत्ति उसके सगे भाई-बहनों और उसके मामा के बीच बांट दी जाती थी और जब कोई स्त्री मर जाती थी तो उसकी सम्पत्ति उसके बच्चों और उसकी सगी बहनों के बीच बांट दी जाती थी, पर उसके भाइयों को उसमें कोई हिस्सा नहीं मिलता था। ठीक यही कारण था कि पति-पली के लिये एक दूसरे की १०६
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