मोर्गन ने इरोक्वा लोगों के, विशेषकर सेनेका कवीले के गोत्रों को प्रारम्भिक गोत्रो का क्लासिकीय रूप माना है। इन लोगो में पाठ गोत्र होते है जिनके नाम नीचे लिखे पशग्रो के नामो पर रखे गये है : १) भेड़िया, २) भालू, ३) कछुआ, ४) ऊदबिलाव , ५) हिरन, ६) कुनाल , ७) वगुला, ८) वाज। प्रत्येक गोत्र मे नीचे लिखी प्रथाएं प्रचलित है: १. गोन अपना "साखेम" (अर्थात् शान्ति-काल का नेता) और अपना मुखिया (युद्ध-काल का नेता ) चुनता है। साखेम को गोत्र में से ही चुनना पड़ता है और यह पदवी गोत्र मे वंशगत होती है - इस अर्थ में कि उसका स्थान खाली होते ही उसे तुरन्त भरना पड़ता है। युद्ध-काल का नेता गोत्र के बाहर से भी चना जा सकता था और यह पद कुछ समय तक खाली रह सकता था। एक साखेम का पुत्र कभी उसका स्थान नहीं ले सकता था, क्योकि इरोक्वा लोगो मे मातृ-सत्ता थी, और इसलिये पुन एक भिन्न गोत्र का सदस्य होता था। परन्तु साखेम का भाई या उसका भाजा अक्सर उसके स्थान पर चुन लिया जाता था। चुनाव में सभी नारी व पुरुष दोनो ही भाग लेते थे, परन्तु यह जरूरी था कि इस प्रकार जो व्यक्ति चुना जाता था, उसे बाकी सातों गोन मंजूर करे। इसके बाद ही कही उसे वाकायदा साखेम के पद पर बैठाया जाता था- यह काम पूरे इरोक्वा महासंघ की प्राम परिपद् करती थी। इसका महत्त्व बाद मे स्पष्ट हो जायेगा। गोन के भीतर साखेम का अधिकार पितातुल्य और केवल नैतिक प्रकार का होता था। उसके पास दमन के कोई साधन नही थे। साखेम होने के नाते वह सेनेका लोगों की कबीला-परिपद् का भी सदस्य होता था, और साथ ही इरोक्वा महासंघ की आम परिषद् का भी। युद्ध- काल का नेता केवल सैनिक अभियान के समय आदेश दे सकता था। २. गोत्र सालेम को और युद्धकालीन नेता को जव चाहे हटा सकता था। यह फैसला भी स्त्री-पुरुष मिलकर करते थे। पद से हटाये जाने पर ये व्यक्ति गोत्र के वाकी सदस्यों की भांति साधारण योद्धा और साधारण व्यक्ति बन जाते थे। कवीले की परिषद् , गोत्र की इच्छा के खिलाफ भी, साखेमों को उनके पदों से हटा सकती थी। ३. किसी सदस्य को गोत्र के भीतर विवाह करने की इजाजत नहीं थी। यह गोत्र का बुनियादी नियम था। यह वह बंधन या जो गोन को १०८
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