पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/७२

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20 परमार्थसोपान [Part I Ch. 1. 7. WE MUST BE BEHOLDEN TO OUR VERY SINS FOR THE VISION OF GOD शङ्कर रामरूप अनुरागे । नयन पञ्चदश अतिप्रिय लागे 11 % 11 निरखि रामछवि विधि हरपाने | आठहिं नयन जानि पछिताने ॥ २ ॥ सुरसेनप उर बहुत उछाहू | विधि तें डेवढ़ लोचन लाहू ॥ ३ ॥ रामहिं चितव सुरेस सुजाना । गौतम शाप परमहित माना 11811 देव सकल सुरपतिहि सिहाहीं । आजु पुरन्दर सम कोउ नाहीं ॥ ५ ॥