पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/५४८

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87 साधु कहावन कठिन है 88 सिंहों के लेहड़े नहीं viii II 15 III 2 89 सुन मंडलमें घर V 15 90 सुन्न सहज मन सुमिरते V 19 91 सुरत उड़ानी गगनको V 25 92 हद हद पर सब ही गया V 35 93 हम लखि लखहिं हमार IV 8 94 हरि दरिया सूभर भरा V 14 95 हाड़ जरें ज्यों लाकड़ी I 6 96 हाड़ सूखि पिञ्जर भए V 8 97 हाथ छुड़ाये जात हो V 3 98 हीरा तहाँ न खोलिये V 6 99 हृदया भीतर आरसी V 21 100 क्षणभङ्गुर जीवन की कलिया I 3