पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/५४२

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ii 27 क्या तन माँजता रे प्रभुदास I 10 28 क्या वे किसी से काम महिपति V 30 29 गुरु कृपाञ्जन पायो रे भाई एकनाथ V 11 30 गुरुने मोहिं दीन्हीं अजब कवीर V 34 31 गुरु बिन कौन बतावे वाट कबीर IV 1 32 गोपी सुनहु हरि सन्देस सूरदास II 13 33 घर तजौं, बन तजों, नागर नगर अज्ञात III 15 35 चेतना है तो चेतले 34 चुवत अमीरस भरत ताल जहँ 36 छाँड़ि मन हरि - विमुखन को सङ्ग सूरदास कवीर V 17 नानक IV 9 II 1 37 जब ते अनहत घोर सुनी चरनदास V 14 38 जाके प्रिय न राम वैदेही 39 जा दिन मन - पंछी उड़ि जैह 40 जिन्हकं रही भावना जैसी तुलसीदास II 7 सूरदास I 9 तुलसीदास III 5 41 जेहि जय होइ सो स्यन्दन तुलसीदास II 9 42 जोगी मत जा, मत जा, मीराबाई IV 17 43 जो पीर मेरा बड़ा औलिया मौला V 27 44 झरि लागे महलिया गगन धरमदास V 8 45 झिलमिल झिलमिल बरसे नूरा यारी V. 9 46 झीनी झीनी बीनी चदरिया कवीर II 8 47 दिवाने मन भजन विना कवीर I 12 48 घोख हो धोख डहकायो सूरदास I 1 49 तत्त हिण्डोलवा सतगुरु गुलाल V 29 50 तुम पलक उधारो दीनानाथ 51 तो भी कच्चा वे कच्चा मीराबाई IV 18 मच्छेंद्रनाथ IV 12 52 तौक पहिरावी, पाँव वेडी लं अज्ञात III 16 53 तो निवहँ जन सेवक तेरा दादू III 9. 54 दरस दिवाना बावला कबीर V 22 55 नरहरि चंचल है मति मोरी रैदास III 10 56 नवधा भगति कहउँ तोही पाहि तुलसीदास II 19