पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/५०९

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11 2. भक्त्यन्तर्गत उपहास. उपहास = व्याजस्तुति = ultimate censure, but ap- parent praise. .... ऊधो धनि तुम्हारो बेवहार धनि वै ठाकुर, धनि वै सेवक धनि तुम वर्तनहार । Contrast व्याजनिंदा which involves ultimate praise. 3. भक्त्यन्तर्गत करुणरस. (a) नैनहीन को राह दिखा प्रभु पग पग ठोकर खाऊं मैं । (b) अबकी राखि लेहु भगवान. -I.3.14. " हम अनाथ बैठीं द्रुम डरिया, पारधि साध्यौ वान | -I-3-12 (c) तुम पलक उधारो दीनानाथ मैं हाजिर नाज़िर कब की खड़ी । -I-4-18 . 4. भक्त्यन्तर्गत रौद्र भयानक. We have already pointed out that and भयानक are the objective and subjective counterparts of each other.