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परमार्थ सोपान उठा दी । वह भी प्रसिद्ध कवि और देशभक्त थे । युद्धोंमें भी उन्होनें बहुतायत से भाग लिया । कुछ सज्जनोंका विचार है कि महात्मा नानक कबीरपंथ को भी गुरु भावसे देखते थे। इस कथन से हमारा मतैक्य नहीं है । आपने हिन्दी, संस्कृत और फारसी का अध्ययन किया। बाबा श्रीचन्द और बाबा लक्ष्मीदास आपके सुपुत्र थे । सं. १५५४ से आप संसार के उपदेशक हुये । यात्रावों में आप गया, पुरी, मक्का, मदीना, बगदाद, ईरान, कन्धार, काबुल, हसन अबुल, दक्षिण लंका, मानस- सरोवर, नैपाल, शिकिम, भूटान, चीन (नैनकिंग), तिब्बत ( ल्हासा ) और जम्मू पधारे। भारत में हरद्वार आदि को गये थे ही। १९ जून १५३८ को आपने गुरु अंगद को अपनी गद्दी का उत्तराधिकारी बनाया तथा उसी साल २२ सितम्बर को स्वर्गारोहण किया । ग्रन्थसाहब में आपकी मुख्य रचनायें थीं जपजी, आरती, दक्षणी ओंकार, सिद्ध गोष्टी आदि । पुत्रों को छोड़कर प्रधान शिष्य को गद्दी देने से भी आपकी महत्ता प्रकट होती है । (१३) मंसूर मंसूर एक पहुँचे हुये मुसलमान धार्मिक सन्त थे जो अनलहक पर विश्वास करते तदनुसार उपदेश भी देते थे । मोग़ल वंशसे पहलेवाले किसी सम्राट् ने इस अपराध में इन्हें प्राणदंड दे दिया । कहते हैं कि चढ़ा मंसूर सूलीपर पुकारा इश्कबाज़ो से । य (ह) उस के बाम का जाना है, आये जिस का जी चाहे ॥ ऐसी धार्मिक असहिष्णुता के उदाहरण उस काल भोले में भी पाये जाते थे। किसी मुस्लिम समालोचक ने लिखा है, कि " था अनल