पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४८२

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परमार्थ सोपान रैदास, घना सदन आदि शूद्र भी आप के शिष्यों में महात्मा थे । रामानुजाचार्य ने नारायणोपासना पर वल दे कर हिंसा युक्त, बलि एवं ऐसे ही कर्म कांडों का निरादर किया था | इधर स्वामी रामानन्द ने रामोपासना पर बल दिया । इन्हो ने संस्कृत में उपदेश दिये और हिन्दी में ते तुलसीदास के पूर्व रामानन्दियों में अध्यात्म रामायण की मुख्यता थी, किन्तु पीछे राम चरित मानस की हो गई । उत्तर भारत में दक्षिण मार्ग वाली शुद्ध वैष्णवता के प्रचार में सर्व प्रथम तथा श्रेष्ठ प्रभाव रामानन्द का ही पड़ा | राधाकृष्ण वाले अवैध प्रेम को भुलाकर आपने सीताराम के वैध प्रेम को प्रधानता दी । कवीर और तुलसी के जो प्रभाव हैं, उन का बहुत कुछ श्रेय रामानन्द को भी है । जो पद दक्षिण में रामानुजाचार्य का है, वही उत्तर में इन का ( है ) | आपने परमेश्वर को भुलाया तो नहीं, किन्तु ईश्वर पर प्रधानता दी । ईश्वर के आपने चार आदर्शीकरण माने अर्थात् अर्चा (मूर्ति) व्यूहविमल (अवतार) पर (चतुर्भुजनारायण ) और अन्तर्यामी ( सर्व व्यापी ) । व्यूह में मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार को मान कर उन के अवतार क्रमशः भरत- प्रद्युम्न, राम-कृष्ण शत्रुघ्न अनिरुद्ध, और लक्ष्मण वलदेव माने । उपदेश हिन्दी में देते हुये भी सिद्धान्त संस्कृत में लिखे । संसार के लिये वर्णभेद ठीक मानकर केवल उपासना के लिये उस का निरादर किया | हिन्दी रचना आप की बहुत कम मिलती है । इन का उदाहरण ग्रन्थ के पृष्ठ ६८ पर है। मिश्र बन्धु विनोद में भी एक अन्य उदाहरण है । (५) महात्मा रैदास. महात्मा रैदास स्वामी रामानन्द के शिष्यों में कवि और परम प्रसिद्ध भक्त थे । ग्रन्थ में इन के उदाहरण पृष्ठ ५२, ८८, २१० और