पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/४३४

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84 Note :- परमार्थसोपान - टिप्पणी [ Part II Ch. II For the idea in Doha compare the following poem which describes how the remon- stration of his wife became an inspiration to Tulsidas' spiritual life. $6 भज मन तलसी राम कहो रे । साँझ भई दिन गयो भवन की । लै सोटा ससुराल चलो रे । जमुना जी अति विषम वहत है: मुरदा जात वहो रे । नाव समझकर बैठे तुलसी, मुर्दा पर तो पार गयो रे । जमना पार गयो जब तुलसी, मारग घर का नहीं मिलो र । रं खिरकिन पर सर्प टंग रह्यो, ताहि पकरि के भवन गयो रे । जितना हेतु कियो तुम हम से उतना हरि से हेत करो रे । चल जात्यो बैकुंठ धाम को, जँह ठाकुर दरवार लगो रे । तुम तो हो मेरी धर्म की माता, हमको ज्ञान दियो रे । जात अहाँ प्रभु भजन करन कूँ, अब तिरिया तेरी सेज न चढ़ो रे । तुलसीदास भजो भगवाना, हरि से रंग मिलो रे । 11 धाय = धाकर from धाना - to run. cf. Marathi धांवणें । राम-प्रेम-पुर छाय - 12 Thatching the city of God. The व्यञ्जना is in the contrast between पुर and गृह. Thatch the city of God for devotees of God and dwell therein. For गृह cf. the Kanarese verse, 'आकाशदोळगोंड आलयवायितु ।' and for पुर ef. Angus - tine's ' City of God. 13 - To shine = लुक ( From लोक लुकाठी (लुक + काष्ठ ) Flaming stick. लोह + काष्ठ | ) जो घर फूंके आपना 16 = आग की लपट या ज्वाला । जलती दहकती लकड़ी, जलती मशाल (The word is not derived from 11 ef. The English expression : Burning the boats. '