पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/३४२

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२८४ परमार्थसोपान [Part II Ch. 5 25. THE SELF FLIES TO THE HIGHEST PINNA- CLE TO RIVET ITSELF ON THE FEET OF GOD. सुरत उड़ानी गगन को, चरन विलम्बी जाय । सुख पाया, साहेब मिला, आनन्द उर न समाय ॥ 26. THERE IS EXCRUCIATING PAIN, BUT AT THE SAME TIME THERE IS THE VISION OF GOD. है बड़ा लुत्फ़ है यार इश्क में, मार भी है और प्यार भी है । सूली पर मन्सूर खड़ा है, दार भी है दीदार भी है ॥ 27. IDENTITY CEASES AS SOON AS IT IS ASSERTED. दी गई मन्सूर को सूली, अदव के तर्क पर । था अनल हक़ हक़ मगर यक लफ्ज़े गुस्ताखाना था ।