पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/३२५

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Doha 30] Pilgrimage २६७ (३०) अनुवाद. एक भरोसा, एक बल, एक आशा और एक विश्वास है । एक घनश्याम राम के लिए तुलसीदास चातक ( हो गया है ) । तुलसीदास कहते हैं कि चाहे पयद परुष पत्थर बरसा कर पंखों को खंड खंड कर दे, परन्तु चतुर चातक को भूल नहीं पड़नी चाहिए | चाहे मेघ बरसा दे, गर्जना कर के डरा दे और कठोर वज्र डाल दे, तब भी क्या चातक मेघ को छोड़ कर कभी दूसरी और देखेगा ? बधिक ने मारा, चातक पुण्यजल में गिर पड़ा। इतने पर भी उसने अपनी चोंच उलट कर उठा दी । तुलसीदास कहते हैं कि मरते समय भी चातक के प्रेमरूपी पट में खोंच नहीं लगी ।