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૨૦૦ परमार्थसोपान [ Part II Ch. 4 CHAPTER 4 The Beginnings of the Pilgrimage. 1 THE SAINT-SWAN SEPARATES THE MILK OF NAME FROM THE WATER OF EXISTENCE. क्षीर रूप सत नाम है, नीर रूप बेबहार । हंस रूप कोई साथ है, तत् का छाननहार ॥ 2. THE CATHARTIC INFLUENCE OF THE GURU'S TEACHING. गुरु तो वही सराहिए जो सिकलीगर होय । जनम जनम का मोरचा, छन में डाले धोय ॥ 3. SUFFERINGS UNDER THE PROTECTION OF GURU IS BUT A BLESSING IN DISGUISE. गुरु कुम्हार सिख कुम्भ है, गढ़ गढ़ कादै खोट । अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट ||