पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/३०२

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२४४ परमार्थसोपान [ Part II Ch. 3 13. THE FORMLESS ITSELF IS FULLY MIRRORED IN THE SADHU. निराकार की आरसी, साधो ही की देह । लखा जो चाहै अलख को इस ही में लखि लेह ॥ 14. KABIR LIES ON THE LAP OF THE IMMUTABLE. भजन भरोसे राम के, मगहर तज्यो सरीर । अविनाशी की गोद में खेलत दास कवीर ||