पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२९६

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२३८ परमार्थसोपान [ Part II Ch. 3 4. TRANSCENDENCE, HIGHER THAN IMMANENCE. अन्तर्जामिहुँ तें बड़ बाहरजामि हैं राम, जे नाम लिए तें । पैज परे प्रहलाद को प्रगटे प्रभु पाहन तें, न हिये तें ॥ 5. ULTIMATE IDENTITY OF TRANSCENDENCE AND IMMANENCE IN THE MULTIFORM NATURE OF GOD. सगुनहि अगुनहिं नहिं कछु भेदा । गावहिँ मुनि पुरान बुध वेदा ॥ अगुन अरूप अलख अज जोई । भगत प्रेम बस सगुन सो होई ॥ जो गुनरहित, सगुन सोड़ कैसे । जलु हिम उपल विलग नहिं जैसे || 6. THE PROXIMITY OF GOD ALONE SAVES ONE FROM ANNIHILATION. चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय । दो पाटन के बीच में, सावित बचा न कोय ॥ चक्की चक्की सब कहै, कीला कहै न कोय । कीला से जो लग रहै, सावित बचता सोय ||