पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२९०

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17 રર परमार्थसोपान [Part II Ch. 2 10. AN ALL ABSORBING LOVE OF GOD. अस्थि चर्म मय देह मम, ता में जैसी प्रीति । तैसी जो श्रीराम मँह, होति न तौ भवभीति ॥ 11. A DEVOTEE MUST LOOK ON ALL BEINGS AS VERILY THE FORMS OF GOD तुलसी यह जग आय कै, सब सों मिलिए धाय । ना जाने किस वेप में, नारायण मिलि जाँय || 12. LEAVE THE HOUSE AND LEAVE THE FOREST; LIVE IN THE CITY OF GOD. घर राखे घर जात है, घर छाँड़े घर जाय । तुलसी घर बन बीच रहु, राम प्रेम पुर छाय ॥