पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२८६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२२८- परमार्थसोपान [Part II Ch. 2 4. KABIR CANNOT BE AFFECTED BY THE COMPANY OF THE BUTCHERS. कविरा तेरी झोंपड़ी, गलकडून के पास । जो करता सो पावता, तू क्या करै उदास ॥ 5. THE LASCIVITY OF THE DANCING ART. मृदंग कहै धिक् है धिक् है, मजीर कहै किनको किनको ॥ विसवा तब हाथ उठाय कहैं, इनको इनको, इनको, इनको ॥ 6. MUSIC SHOULD END IN MYSTICISM. गाया है बूझा नहीं, गया न मन का मोह | पारस तक पहुँचा नहीं रहा लोह का लोह ॥