पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२८०

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२२२ परमार्थसोपान [Part II Ch. 1 3. THE UNIVERSAL REIGN OF UNCERTAINTY. क्षणभंगुर जीवन की कलिका, कल प्रात को जानै खिली न खिली । मलयाचल की शुचि सीतल मंद, सुगन्ध समीर मिली न मिली ॥ कलि-काल कुठार लिये फिरता, तनु नम्र है चोट झिली न झिली । कह ले हरि-नाम अरी रसना, फिर अन्त समय पै हिली न हिली ॥