पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२७५

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Pada 34] Ascent. २१७ (३४) अनुवाद. गुरु ने मुझको अजय जड़ी दी है । यह जड़ी अमृत- रस से भरी है, अतएव वह मुझे बहुत प्यारी लगती है । इस शरीर रूपी नगर में एक अजब बँगला है । (मैंने ) उसमें जड़ी छिपा के रख दी है । उसको सूँघते ही पाँचों नाग और पचीसों नागिन तुरन्त मर गई । इस काले ने सब संसार को खा डाला, पर सद्गुरु को देख कर डर गया। कबीर कहते हैं कि, हे भाई सुनो ! ( सद्गुरु ) परिवार ले कर तर जाता है ।