यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
B २१६ परमार्थसोपान [ Part I Ch. 5 34. KABIR ON THE CONCEPTION OF PARIVARA-MUKTI. गुरु ने मोहिं दीन्हीं अजब जड़ी ॥ टे ॥ सोहि जड़ी मोहिं प्यारि लगतु है, अमृत रसन भरी 11 2 11 काया नगर अजब इक बँगला, ता में गुप्त धरी 11311 पाँचों नाग पचीसों नागिन, संघत तुरत मरीं या कारे ने सब जग खायो, सतगुरु देख डरी कहत कबीर सुनो भई साधो, लै परिवार तरी ॥ ३ ॥ 11811 ॥ ५ ॥