पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२७३

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Pada 33] Ascent. २१५ " (३३) अनुवाद. जो श्रेय की " बात है, वही मैं कह रहा हूँ । पर उसको न कोई जानता है, न कोई मानता है, इस से मुझको आश्चर्य हो रहा है । सभी अपने अपने मन के राजा हैं । कोई मानता ही नहीं । अत्यन्त अभिमान और लोभग्रस्त होकर अपने को खो चले हैं । मूर्खों ने “ मैं और मेरी " करके अपनी देह को बेकार कर दी, समझते नहीं । संसार - सागर के मध्य में बहुत लोग थक गए और असंख्य डूब गए हैं । प्रभु ने दया करके मुझको आज्ञ दी कि, किन्हीं को समझाओ | कबीर कहते हैं, मैं तो कह कह कर हार गया । अब मुझे कोई दोष न दे ।