पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२७२

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२१४ परमार्थसोपान [ Part I. Ch. 5 33. KABIR ON HIS HAVING RECEIVED A MESSAGE FOR THE DELIVERANCE OF THE WORLD. कहूँ रे जो कहिने की होड़ ॥ टे ॥ ना कोइ जानै ना कोइ मानै, ताते. अचरज मोइ अपने अपने रंग के राजा, मानत नाहीं कोइ । अति अभिमान लोभ के घाले, चले अपनपौ खोइ मैं मेरी कार यह तन खोयो, समझत नहीं गँवार | भौजल अपर थाकि रहे हैं. बुड़े बहुत अपार मोहीं आज्ञा दई दया करि, काहूँ कूँ समुझाइ । कह कबीर मैं कहि कहि हान्यो, || 2 11 ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ अब मोहिं दोस न लाइ 11811