पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२७१

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Pada 32] Ascent. २१३ (३२) अनुवाद. हे माधव, तेरा यश पावन है। तू मेरे घोर पापों का मोचक है ! "तेरी कीर्ति पापों का विनाश कर देती है " यों लोक और वेद गाते हैं । हे धरणीधर ! जब हम पाप ही नहीं करते, तो तू नाश क्या करेगा ? जब कीचड़ का शरीर से स्पर्श ही नहीं हुआ तो जल किस वस्तु का प्रक्षा- लन करेगा ? जब मन विषय-रस-मग्न होने से मलिन हो, तब हरि का नाम उसको सँभालेगा । जब हमारे मन, बुद्धि और चित्त निर्मल हैं, तब तू किस दोष का परिहार करेगा ? रैदास कहते हैं कि, हे प्रभु ! तुम दयालु हो; जिसको बन्ध ही नहीं; उसको तुम मुक्त क्या करोगे ?