पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२६९

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Pada 31] Ascent. २११ . (३१) अनुवाद. आरती कहाँ तक जलावे ? इस विषय में सेवक दास को आश्चर्य हो रहा है। बावन कंचन की नीरांजनाओं में दीप जलाने पर भी जड़ वैरागी की दृष्टि में (ईश्वर का रूप ) नहीं आता । जिसके लोग लोम में करोड़ों सूर्यों की शोभा भरी है, उसके सामने आरती करने अथवा अग्नि में हवन करने से क्या लाभ ? पाँच तत्व और त्रिगुणी माया का द्रष्टा अखिल विश्व में समाया है । रैदास कहते हैं कि, मैंने उसको अपने में ही देख लिया । जगत का समस्त प्रकाश एकत्र करने पर भी उसके एक रोम के तुल्य नहीं होता ।