पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२६७

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Pada 30] Ascent. २०९ (३०) अनुवाद. हमें किसी से क्या काम है ? हम केवल गुरुघर के गुलाम हैं | हम वेपरवाह होकर मन की मौज के अनुसार काम करने वाले, अपने दिल के राजा हैं। हम किसी से जरूरत नहीं रखते, टुकड़ा माँग कर खाते हैं | गुरुज्ञान के गाढ़ नशे में झूमते रहते हैं । गगनमण्डल में दस नादें। की ध्वनि सुनते हैं, तीनों अवस्थाओं के ऊपर तुर्या की धूती जलाकर बैठे रहते हैं । चन्द्र और सूर्य मशालची होकर आगे चलते हैं । हम अर्धकपाल में अमृत भर-भर कर पीते हैं । तुर्या उलट कर उन्मनि हो गई और जाकर परमात्मा में मिल गई । पलक में रहो और कल्मष जलाकर अलक्ष्य को जगा दो । भोला फ़कीर पागल हो कर भटक रहा है । सब संसार झूठी माया से प्रीति लगा कर गोते खा रहा है। " तुम्हें यहाँ रहना नहीं है, कुछ काम करो, डेरा अभी गिर जाएगा" इस प्रकार नरहरिनाथ शीघ्र आकर चेतावनी देते है|