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२०८. परमार्थसोपान [ Part I Ch. 5 30. "I AM NOW A BONDSMAN OF MY LORD ; SAYS NARAHARINATH, "WHAT CARE I FOR THE WORLD? " क्या वे किसी से काम, हम तो गुलाम गुरु घर के । बेपरवा मन मौजी राजा, हम अपने दिल के

नहीं किसी से दरकार, टुकड़ा मँगकर खाते हैं । गुरु ज्ञान के अमल नशे में, हमेश झुलते हैं

गगन मण्डल में दस नादों का, अवाज सुनते हैं । तीनों ऊपर धुनी लगाकर, बैठे रहते हैं

चाँद सूरज मशाल लेकर, आगे चलते हैं । अर्धचन्द्र का अमृत प्याला, भर भर पीते हैं

उल्टी तुरिया होगइ उन्मनि, मिल गई जाकर के पलख में रहना अलख जगाना, कलख जलाकर के ॥ ५ ॥

हुआ दिवाना फकीर भोला, भटकत फिरता है । झूटी माया प्रीति लगाकर, गोते खाता है

नाहीं रहना काम करो कुछ डेरा गिरता है । नरहरि मौला जल्दी आकर, हुशार करता है