पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२५४

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१९६ परमार्थसोपान [ Part I Ch. 5 24 ON THE EQUANIMITY OF INTOXICATION THROUCH GOD-POSSESSION. मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै ॥ टे ॥ हीरा पाय गाँठि गठियायो, बार बार वाको क्यों खोलें । हलकी थी जब चढ़ी तराजू, पूरी भइ तब क्यों तोलै ॥ १ ॥ सुरत कलारी भइ मतवारी, मदवा पी गइ विन तोलै । हंसा पाए मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोलै तेरा साहब है घट भीतर, बाहर नैना क्यों खोलै । 11.3.11 कहै कबीर सुनो भइ साधो, साहिब मिल गए तिल ओलै ॥ ३ ॥