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૮૩ परमार्थसोपान [Part 1 Ch. 5 18. THE FLAVOURISM OF KABIR. ऐसो है रे हरि - रस, ऐसी हैं रे भाई जाके पियै अमर है जाई ध्रुव पीया प्रहलाद हुँ पीया, पीया मीराबाई हरि-रस महँगा मोल का रे, पीयै विरला कोय | हरिरस महँगा सो पियै, धड़ पै सीस न होय आगे आगे दावा जलै रे, पीछे हरिया होय । कहत कबीर सुनो भाई साधो, हरिभज निर्मल होय , 112 11 11