पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२३८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. १८० परमार्थसोपान [Part I Ch. 5 16. KABIR ON THE MORAL AND PSYCHOLOGICAL EFFECTS OF MYSTICAL REALISATION. रस गगन गुफा में अजर झरै ॥ टे ॥ चिन वाजा झनकार उठे जहँ, समुझि परै जब ध्यान धरै ॥ १ ॥ बिना ताल जहँ कमल फुलाने, तेहि चदि हंसा केलि करे ॥ २ ॥ बिन चन्दा उजियारी दरसे, जहँ तहँ हंसा नजर परै ॥३॥ दसवें द्वारे ताली लागी, अलख पुरुख जाको ध्यान धरै ॥ ४ ॥ काल कराल निकट नहिं आवै, काम क्रोध मद लोभ जरै जुगन जुगन की तृपा बुझाती, करम भरम अघ व्याधि टरै कहै कबीर सुनो भई साधो, अमर होय कबहूँ न मेरे ॥५॥ 11 & 11 ॥ ७ ॥