पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२२९

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Pada 12] Ascent. .१७१ (१२) अनुवाद. अलक्ष्य पुरुष पलक में झलकता है। बिजली की लहलहाट चमक रही है । मन मग्न हो गया है । आज गुरु स्वामीनाथ मिले। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर बिठाया और दो अक्षर का बीजमंत्र पढ़ाया । मेरे मस्तक पर हाथ रक्खा, और कहा कि, अब तू सच्चा गुरु का बच्चा है | परीक्षा देख | पट चक्र को युक्ति से कसकर बाँध । डर मत । जोर से पकड़ । बीच में कोई आवे तो उसे धक्का दे । आगे-पीछे मोर पंख देख | बिजली की लहलहाट चमक रही है । नीचे धरणी, ऊपर आसमान छोड़ बीच ही में आवागमन कर । खसक कर आगे बढ़ | प्यारे बच्चे, उलट-पुलट चल कर युक्ति से साहब से मिलना । भौहों के ऊपर त्रिकूट के शिखर पर ध्यान लगा । नज़र से खूब देख, जिधर देखे उधर चांदी सोना बिखरा है । वह मूल प्रकृति की कान्ति है। माया को तेज कर असली स्वरूप को चीन्ह । विजली की लहलहाट चमकती है। ( Contd. on p. 173 )