पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२२१

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Pada 8] Ascent १६३ (८) अनुवाद. महल पर झड़ी लग गई है । गगन घहरा रहा है । क्षण गर्जना होती है, क्षण बिजली चमकती है । लहर उठती है, जिसकी शोभा का वर्णन नहीं किया जाता । शून्य महल में अमृत बरस रहा है । साधु प्रेमानन्दित हो कर नहा रहा है । खिड़की खुल गई । अँधेरा मिट गया । सद्गुरु धन्य है, जिसने यह सब दिखला दिया है । धर्मदास हाथ जोड़कर विनय करते हैं कि, मैं सद्गुरु चरण में समा रहा हूं।