पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२१३

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Pada 4] Ascent. १५५ (४) अनुवाद. ( मैं ) श्री हरि के सुखदाई पदों की वन्दना करता हूँ । जिस हरि की कृपा से पंगु गिरि को लांघता है, अन्धे को सब कुछ दिखाई पड़ता है, बहिरा सुनने लगता है, गूंगा बोलने लगता है और रंक सिर पर छत्र धरा कर चलता है । सूरदास कहते हैं कि हे करुणामय स्वामी ! उन चरणों को प्राप्त करके बार-बार मैं उनकी वन्दना करता हूँ ।