पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२०६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१४८ परमार्थ सोपान [Part I Ch. 5 CHAPTER 5 The Highest Ascent. 1. MIRABAI ON THE GREAT JOY CONSEQUENT UPON THE POSSESSION OF THE JEWEL OF GOD. पायो जी मैंने राम रतन धन पायो ॥ दे || वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु, किरपा करि अपनायो ॥ १ ॥ जनम जनम की पूँजी पाई, जग में सभी खोवायो ॥ २ ॥ खरच न खूटै, चोर न लूटै, दिन दिन बढ़त सवायो ॥ ३ ॥ सत की नाव खेवटिया सतगुरु, भव सागर तरि आयो 11811 मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, हरखि हरखि जस गायो ॥ ५ ॥