पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२०४

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१४६ परमार्थसोपानं [ Part 1 Ch. 4 17. MIRA'S LONG WAITING CROWNED WITH SUCCESS. तुम पलक उधारो दीनानाथ । मैं हाजिर नाज़िर कब की खड़ी ॥ टे ॥ साहू थे दुस्मन होइ लागे, मैं सब को लगू कड़ी 11 2 11. दिन नहिं चैन रात नहिं निदरा, यूँ खड़ी खड़ी ॥ २ ॥ कहा बोझ मीरा में कहिए, सौ पर एक घड़ी 11 3 11 गुरु रैदास मिले मोहिं पूरे, धुर से कमल भिड़ी सतगुरु सैन दई जब आके, जोत में जोत मिली 11811 ॥ ५॥