पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/२०३

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Pada 16] Pilgrimage १४५. (१६) अनुवाद. हे योगी, मत जाओ, मत जाओ, मत जाओ। मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूं | प्रेम भक्ति का मार्ग विचित्र है, मुझ को उसकी गली लगा जाओ । या अगरु चन्दन की मैं चिता रचाऊँ; तो उसे अपने हाथ से जला जाओ। मैं जब बिलकुल जलकर भस्म की ढेरी हो जाऊँ तब उसको अपने शरीर पर लगा कर जाओ । प्रभु गिरिधर नागर की भक्त मीराबाई कहती हैं हे गुरु ! तुम ज्योति में ज्योति मिला जाओ ।