पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१४१

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Pada 7] The Relation of God ८३ (७) अनुवाद. नाम की रट लग गई है, अब वह कैसे छूटेगी ? प्रभुजी, तुम चन्दन हो, मैं पानी हूं जिसके अंग अंग में आपकी गंध समा गई है। प्रभुजी, तुम मेघ हो, मैं बन का मोर हूं | जैसे चकोर चन्द्र की ओर देखता है ( वैसे ही मैं तुम्हारी ओर देखता हूँ ) प्रभुजी, तुम दीपक हो, मैं बत्ती हूँ, जिसकी ज्योति रात दिन जलती रहती है । प्रभुजी, तुम मोती हो, मैं धागा हूं। जैसे सुहागा सोने को मिलता है ( वैसे ही तुम मुझको मिलते हो ) । प्रभुजी, तुम स्वामी हो, मैं दास हूँ; ऐसी भक्ति रैदास करता है ।