पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१२३

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Pada 15] Moral Preparation વધ (१५) अनुवाद हे मुनि, सुनो, तुम से प्रसन्नता पूर्वक कहता हूं : जो सव का भरोसा तज कर मुझे भजते हैं, मैं सदा उनकी रखवाली करता हूँ, जिस प्रकार माता बालक की रखवाली करती है | जब छोटा बच्चा दौड़कर अग्नि या सर्प को पकड़ता है, तब माता उसको अलग करके रक्षा करती है । प्रौढ़ हो जाने पर माता उस पुत्र पर प्रीति करती है, पर ( उस प्रीति में ) पिछली बात नहीं रहती । मुझ को ज्ञानी प्रौढ़-तनय के समान हैं; अमानी भक्त छोटे बच्चे के समान हैं । जिनको मेरा बल हैं और जिनको अपना बल है, उन दोनों ही के लिए काम और क्रोध शत्रु हैं। यह विचार कर पण्डित मेरा भजन करते हैं । और ज्ञान पा जाने पर भी भक्ति नहीं छोड़ते । 1 1