पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१२२

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c. परमार्थसोपान [ Part 1 Ch. 2 15 GOD IN RELATION TO THE JNANI AND THE BHAKTA, सुनु मुनि तोहिं कहउँ सहरोसा । भजहिं जे मोहिं तजि सकल भरोसा || करउँ सदा तिन्हकै रखवारी । जिमि बालक राखड़ महतारी ॥ गह सिमु बच्छ अनल अहि धाई । तहँ राखह जननी अरगाई || प्रौढ़ भए तेहि सुत पर माता । प्रीति करड़, नहिं पाछिलि बाता ।। 1. मोरे प्रौढ़ तनय सम ज्ञानी । बालक सुत सम दास अमानी । जिनहिं मोर बल निज बल ताही । दुहु कहँ काम, क्रोध, रिपु आहीं ॥ यह विचारि पण्डित मोहिं भजही । पाएहुँ ज्ञान भगति नहि तजहीं ॥