पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/११६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५८ परमार्थसोपान [Part I Ch. 2 ( Contd. from p. 56 ) राम भगति मणि उर बसि जाके । दुख लवलेस न सपनेहु ताके || चतुर सिरोमणि तेइ जग माहीं । जे मणि लागि सुयतन कराहीं ॥ सो मणि जदपि प्रगट जग अहई । राम कृपा बिनु नहिं कोउ लहई ||