४२ पदुमावति । २ । सिंघलदीप-बरनन-खंड । [२८ दोहा। =ाम्रा नाए सुगन्ध । खजहजा गुआ सुपारी जाइफर सब फर फरे अपूरि। आस पास घनि इविली अउ घन तार खजूरि ॥२८॥ आँब - झुकाये हैं। पौंड = पैडौ। ताके= देखने में । जाउँनि = जामुन = जम्बू । डौठो -देख पड़ती है। फरुहुरी= फरहरौ= छोटे छोटे मेवे के वृक्ष । ढूंदरासन = इन्द्रासन । चुत्र = चूता है । पुहुप पुष्प। बासु = वास = खाद्य वृक्ष, जिन के फल खाये जाते हैं। अक्राऊँ = अमरावती = इन्द्र के बगीचा मा श्रेष्ठ बगौचा। अंब्रित = अमृत । गुत्रा एक प्रकार को पूर्वी सोपारी। इबिलौ= अमिलौ।। अत्यन्त सघन (गज्झिन ) श्राम फरे हैं और शोभित हैं। और (जो श्राम ) जैसा (अधिक ) फरे हैं, तैसा-हौ अधिक शिर झुकाये हैं। तात्पर्य यह कि फल से भरे भी है, तौ-भी अभिमान से रहित हो कर नम्र हो गये हैं (शिष्ट पुरुष के ऐसा ) ॥ कटहर डार और पेंडी से लग कर पके हुए हैं । (दूस वृक्ष का यही स्वभाव है कि डार और पेंडी में फरता है )। बडहर जो है सो देखने ( ताके) में अति अनूप (अति सुन्दर) हैं । (इस का फूल डारों में ऐसा गुथा रहता है, कि देखने में बडा मनोहर जान पडता है ) ॥ पकी खिरनी खाँड ऐसी मौठी है। पको जामुन भौरा सौ (काली) देख पडती है ॥ नरियर फरे हैं, फरहरी ( सब ) फरी है। (इस प्रकार से ) फरी (वाटिका) ऐसी शोभित है, जानाँ इन्द्रासन-पुरी अर्थात् अमरावती है। फिर अत्यन्त मौठा महा चू रहा है। ( वह ), जेसा मधु (शहद) मोठा होता है, वैसा मौठा, और, जैसा पुष्य में वास होता है, वैसा (उस में ) वास ( सुगन्ध ) है । और जितने खजहजा (मेवे के वृक्ष ) हैं, जिन का नाम नहीं आता, उन सब को राव लोगों को अमरावती (वाटिका) में देखा ॥ शाखाओं में सब (फल) ऐसे लगे हैं जैसे अमृत, (उन को) जो चखता है सोई लोभाय रहता है ॥ गुआ, सुपारी, और जायफर सब (वृक्ष) अपूर (भर पूर) फरे हैं ॥ श्रास पास ( अगल बगल ) घनि ( गज्झिन ), अर्थात् बहुत, अमिलो और बहुत तार, खजूर ( लगे ) हैं । वाटिका के भीतर दून की शोभा नहीं होती, इस लिये किनारे पर लगना लिखा है ॥ चौथौ चौपाई का 'नरिअर फरे भरी खुरुहुरौ। फरौ जानु इँदरासन-पुरौ ॥' ऐमा पाठ उत्तम जान पडता है, तब 'नरियर फरे हैं (उन में) खुरुहरी भरी है।
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