३६ पदुमावति । १ । असतुति-खंड । [२४ पाठ कहते हैं ॥ भाषा से, कवि के देश की भाषा समझना, जिसे हम लोग अाज पुरानी अवध की भाषा कह सकते हैं ॥ जन्म-स्थान छोड कर, जायस नगर में कवि का श्राना, और वहाँ पर कथा का प्रचार करना, इस पर दृष्टान्त दिखलाते हैं, कि कवि, व्यास और रस से पूरौ (भरा हुआ) कमल, इन से जो दूर हैं वे निकट, और जो निकट में हैं वे दूर हैं, जैसे काँटा फूल के निकट-हौ है, परन्तु दूर है, अर्थात् फूल गुण को वह कभी नहीं जानता, नहीं तो फूल में लपट कर रहता। इस लिये मानौँ वह फूल और जैसे चौंटा गुड के दूर रहता है, परन्तु निकट-ही है, अर्थात् चौटा गुड से अन्यत्र कहौं दूर अपनी विल में रहता है, परन्तु वायु-दारा गुड का सुगन्ध पाते-हौ निकट हो जाता है ॥ निकट रहने पर दूर और दूर रहने पर भी जो निकट है, दूस पर और एक दृष्टान्त दिखाते हैं, कि देखो भ्रमर वन-विभाग से, अर्थात् बहुत दूर से, श्रा कर, कमल का बास लेता है, परन्तु दर्दुर जो भली भाँति से कमल के पास ही शोभित है, उस कमल के बास को नहीं पाता ॥ कवि का भाव है, कि अवध की भाषा में काव्य होने से यद्यपि मुसल्मान लोग अनादर करेंगे, तथापि हिन्दू जो मुझ से बहुत दूर हैं मेरे काव्य का श्रादर करेंगे। इसी प्रकार यह भी कवि का भाव है, कि मेरे जन्म-स्थान के लोग जो दिन रात मेरी कविता को सुना करते थे, कुछ भी श्रादर न किये ; और जायस जो कि दूर है, वहाँ के लोगों ने बहुत-ही आदर किया ॥ इस विषय में परम्परा से ऐसा प्रसिद्ध है, कि मलिक मुहम्मद पहले अपने जन्म-स्थान-हौ में रह कर, पदुमावति के दो चार खण्डों को बना कर, गाया करते थे। दून के साथ साथ चेले लोग भी गाते गाते उन खण्डौँ को अभ्यास कर लिये ॥ एक चेला रमते रमते जायस में पहुंचा, और जो खण्ड उसे अभ्यास था, उस का गाना प्रारम्भ किया। वहाँ का राजा उस खण्ड को कविता पर ऐसा मोहित हुआ, कि उस चेले के साथ अपने सरदार को भेज, बडे श्रादर से मलिक मुहम्मद को अपने यहाँ बुलाया, और पूरी कथा बनाने के लिये प्रार्थना किया ॥ बहुत लोगों से यह भी सुना जाता है, कि उस चेले को नागमती का बारह मासा याद था, और उसी को उस ने गाया था। उसी पर वहाँ का राजा मोहित हो गया, विशेष कर बारह मासे के दूस दोहे पर 'कवल जो विगसत मान-सर, विनु जल गप्रउ सुखाइ। ॥ २४ ॥ इति स्तुति-खण्डं नाम प्रथम-खण्डं समाप्तम् ॥ १ ॥
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