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२८१] सुधाकर-चन्द्रिका। उ= - - किया। सेवा = टहल = खिदमत । तहि = तम् = तिसे = उसे। बोलाद = श्राहय आवाद्य = बुला कर। पूछह = पृच्छथ= पूछिए। श्रोहि तस्य = उस का। देसू = देश। अपि = और । जोगिन्ह कर = योगिनाम् = योगिओं का । भेसू = वेष । हमरे = अस्माकम् = हमारे । कहत = कथने = कहने में । रहद् = रहता है (तिष्ठति ) । मानू = मान = आदर। वह = सः । बोल = बदेत् = बोले । मोई = स एव = वहौ । परवानू = प्रमाण । जहाँ = यत्र । बारि= वालिका =बाला = कन्या । तहँ = तत्र = तहाँ । श्राउ = श्रायात् अाया। बरोका =बर ओका = उस का वर। करहु = कुर्वथ = कौजिए । बिबाह = विवाह = व्याह । धरम = धर्म= पुण्य । तो का = तवक = तुझ= तुझ को। मन = मनसि । मान = मान = मन्यते । काँधौ = स्कन्धी = कन्धा देनेवाला = आधार देने-वाला। परखि = परीक्ष्य = परीक्षा कर = परख कर। रतन = रत्न। गाँठौ = ग्रन्थि = गाँठ। तब तदा। बाँधी = बाँधदू (बध्नाति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन ।। छपाए = छिपाने से = क्षपयन्। ना = न = नहौँ । छपद = क्षपति= छिपता है। पारख = पारखी = परीक्षक । हो = भवेत् = स्यात् = हो । सो= मो = वह । परीख परीक्षेत = परखे। घालि = घाल कर = कर्षयित्वा = कस कर। कसउटी = कषवटी- कसौटी। दौजिअ = दीयेत = दीजिए । कनक = सुवर्ण = सोना। कचउरी= कचौरी- मोने ताँबे का मेल । भौख = भिक्षा ॥ जब राजा गन्धर्व-सेन अपनी रानी के समेत महादेव के पैरों पर पड अपना अपराध क्षमा कराया) तब महादेव जी उठ कर दूतत्व करने लगे ( और कहने लगे कि जो बात ) पहले कडुई लगती है वह अन्त में मोठी होती है। हे गन्धर्व-सेन राजा, जग में पूजनीय है, चौदहो (विद्या के ) गुण ( तेरे में ) है, दूसरा कौन है जो तुझे सिखावें । जो तेरा हीरामणि पक्षी है वह चितौर गढ गया था (और उसी ने यह तेरी) सेवा की है, अर्थात् उमौ ने तेरौ कन्या के योग्य इसे लाया है। उस (शक ) को बुला कर उस (रत्न-सेन ) के देश को पूछो, और योगियो के वेष को (भी) पूछो, अर्थात् उस से पूछो कि ये सब योगिओं के वेष बनाए कौन हैं। मेरे कहने से मान न रहे, अर्थात् मेरे कहने का प्रमाण दूँ न माने, तो (जो) वह कहे उसी का प्रमाण रो। जहाँ (तेरी) कन्या है वहाँ ही उस का वर पा गया, (अब दूस के साथ) व्याह कर दो (ऐसा करने से ) तुम्हें बडा धर्म होगा। जो श्राधार -