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५४८ पदुमावति । २५ । सूरौ-खंड । [२७६ - २७७ 1 . उसी समय (राजा गन्धर्व-सेन के यहाँ बड़े बड़े लोग जो बैठे थे सभी ने भाट को बात को निन्दा करने लगे। उस निन्दा को) सुन कर महादेव (भाट) का मन लज्जित हो गया, (और) भाट कौ कला अर्थात् चाल ऐसे हो कर राजा गन्धर्व से विनय करने लगे, अर्थात् भाट के ऐसा दहिने हाथ से गन्धर्व-सेन, को आशीर्वाद दे कर भाट विनय करने लगा। राजा गन्धर्व-सेन, सुन, दूँ बडा राजा है (और लोग ) मुझे (भाट को) महेश की मूर्ति कहते हैं। पर (ऐसी चाल है कि) जो बात आगे के लिये भलो हो, उस को कहना चाहिए, क्रोध लगने से क्या हुआ, अर्थात् सुनने-वाले को क्रोध लगे तो लगे, पर भली बात को जरूर कहना चाहिए। भारवी ने माघकाव्य में सच लिखा है कि 'हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः'। हित की बात मनोहर भी हो यह दुर्लभ है। यह राज-कुमार है योगी नहीं, पद्मावती (को सुन्दरता) सुन कर विरही हो गया है। जम्बूद्वीप के राज-घराने का बेटा है, जो ( कर्म में ) लिखा है वह मिटाया नहीं जाता। तेरेई सुग्गा (हीरामणि ) ( जम्बू- द्वीप में ) जा कर इस को ले आया है, और (यह वही राज-कुमार है) जिस का तें (पद्मावती के साथ व्याह करने के लिये) बरछा माना है अर्थात् बरच्छा किया चाहता है। फिर यह बात शिव-लोक में (भौ) सुनी गई है ( वहाँ भी इस के साथ पद्मावती का व्याह योग्य समझा गया है। सो आप दूस साथ पद्मावती का) व्याह कीजिए। ऐसा करने से ) आप को बड़ा धर्म होगा। (यह ) खप्पर लिए उमौ (पद्मावती) को मांगता है, मरने पर भौ (तुम्हारा) दरवाजा न छोडेगा। राजा लँ बूझ कर देख जो यह (सच्चा ) मोना है (या) कचौडी है। (मेरा कहना मान दूसे ) भीख देश्रो, मारो मत, अर्थात् पद्मावती के साथ इस का याह कर दो, मारो मत । यही पद्मावती के योग्य वर है ॥ २०६ ॥ चउपाई। भाट सेस ईसुर जस भाखा। हनुवंत बौर रहइ नहिँ राखा ॥ लौन्ह चूरि ततखन वइ सूरौ। धरि मुख मेलेसि जानहुँ मूरौ ॥ महादेओ रन घंट बजावा। सुनि कइ सबद बरम्ह चलि आवा ॥ चढे अतर लेइ बिसुन मुरारौ। इँदर-लोक सब लाग गोहारी॥ फन-पति फन पतार सउँ काढा । असटउ कुलो नाग भा ठाढा ॥