पदुमावति । २५ । सूरी-खंड। [२७५-२७६ कहना नहीं छोडूंगा)। भाट को क्या मौत से डरना, (भाट के ) हाथ में कटार है (मच कहने पर जौं श्राप को बुरा लगे तो आप क्या मुझे मारेंगे मुझे तो) पेट में कटार मार कर (आप) मरना है। ( अब मैं सच बात कहता हूँ, सुन,) जम्बूद्वीप में जो चितौर देश है, वहां का (सब से) बडा राजा चित्र-सेन था। यह रत्न-सेन उस का बेटा है, (यह ) चौहान वंश का है (जो कर्म में लिखा रहता है वह ) मिटाया नहीं जाता। तलवार चलाने में सुमेरु पहाड ऐसा अचल है, जौं सारा संसार लगे तो भी टरने-वाला नहीं। दान देने में सुमेरु के ऐसा है (कभी ऐसा महौं कि धन ) घटे ; जो कोई उम से मांगता है वह दूसरे से नहीं मांगता, अर्थात् राजा रत्न-सेन के दान से वह सन्तुष्ट हो जाता है, फिर उस को दूसरे से मांगने को जरूरत नहीं पड़ती। (हे राजा गन्धर्ब-सेन, सुन, मैं आशीर्वाद देने के लिये अपना ) दहिना हाथ उस के (आगे) उठा चुका हूँ, (अब) दूसरा ऐसा कौन है जिसे ( दहिने हाथ से ) आशीर्वाद दूँ ॥ मेरा नाम महापात्र है मैं उमौ (रत्न-सेन ) का ढोठा भिखारी हूँ ( उसी के आगे दहिना हाथ उठाने-वाला हूँ)। यद्यपि खरी बात कहने से (सुनने-वाले को) क्रोध हो जाता है, पर दूत (बुरा लगे तो लगे ) सच्ची ही बात कहते हैं । विश्वनाथ महापात्र ने काव्यप्रकाश बनाया है। ये बडे कवि थे दूमौ लिये पन्थकार ने आदर के लिये केवल पदवौ मात्र से भाट का नाम महापात्र रकबा हो तो प्राश्चर्य नहौं ॥ २७५ ॥ चउपाई। ततखन सुनि महेस मन लाजा। भाट कला होइ बिनवा राजा ॥ गंधरब-सेन तु राजा महा । हउँ महेस मूरति सुनु कहा ॥ पइ जो बात होइ भलि आगईं। कहा चाहि का भा रिस लाग॥ राज-कुऔर यह होइ न जोगौ। सुनि पदुमावति भएउ बिगौ ॥ जंबूदीप राज-घर बेटा। जो हइ लिखा सो जाण न मेटा ॥ तोरइ सुइँ जाइ प्रहि आना। अउ जा कर बरोक तुइँ माना ॥ पुनि यह बात सुनौ सिउ लोका। करहु बिबाह धरम बड तो का ॥
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