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५८४ पदुमावतौ । २५ । सूरी-खंड। [२७० सब = सर्वे । मुख = मुँह । हेरा = हेरद (हेइते ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । मांगहि = याचन्ते = माँगते हैं। बिधिना = विधि = ब्रह्मा। पहुँ = पहँ = से । रोई = रुदित्वा =रो कर । करु = = कर । छोडावद = छोडावे ( छोटयेत् ) । कोई = कोऽपि। कहि = कथयित्वा = कह कर । बिनति = विनति = विनय। सुनाई = सुनाव (श्राव- यति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । बिकल = विकल = दुःखित । बहुत = बहुतर । किछु = कुछ = किञ्चित् । कहा = कथन । जाई = जायते । काढि = कर्षयित्वा = खींच कर = निकाल कर । परान = प्राण । बसि = बैठौ = उपविष्टा । लेदू = ले कर =ालाय। हाथा=हाथ= हस्त । मर = मरे = म्रियेत । तो तर्हि तो। मरउँ= मरूँ = मराणि। जिउँ= जौवेयम् = जौवें। तहि = तस्याः = तिम के। साथा=साथ= सार्थ = मङ्ग। सुनि = श्रुत्वा = सुन कर। तब = तदा। हंसा = हँसद (हसति ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । प्रान = प्राण । घट = शरीर । मह = मध्ये = में । बसा = बस = वसति = बसता है॥ अउ = अपि = और। भाट = स्तुति करने-वाला (महादेव) दसउँधौ = दशधौ = साधारण मनुष्य से जिस की दश गुनी बुद्धि हो। आज कल भाटौँ में एक जाति राय और दूसरी दसौंधी कहाती है। भy = भए = बभूवतुः हुए। जिउ = जीव । पर = उपरि। प्रक=एक । ठाउँ= ठाव = स्थान । चलहु = चलें। जादू = आयाय = जा कर। कह = कहें। बतकही = वार्ताकथनम् = बातचीत । बहठु हहि = बैठे हैं - उपविशन्ति = तिष्ठन्ति । राउ = राजा ॥ ( इसी बीच में) हीरामणि शक (पद्मावती का) सँदेसा ले कर गया जहाँ कि ( लोग ) ( राजा रत्न-सेन को) शूली (फाँसो) देने ले गए थे। हीरामणि रत्न-सेन को ( ऐसौ दुर्दशा में ) देख कर रोने लगा कि (हाय) लोगों ने रत्न-सेन को ठग कर (दूस के) ज्ञान को खो दिया। हीरामणि का रोना देख कर सब रोने लगे और राजा रत्न सेन का मुँह देखने लगे। सब (लोग) रो कर ब्रह्मा से (हाथ जोड जोड कर) माँगते हैं कि (हे विधि, दूस समय ) उपकार कर (और ऐसौ प्रेरण कर कि) कोई (श्रा कर राजा रत्न-सेन को शूली से ) छोडावे । (शक ने पद्मावती का सब सँदेसा) कह कर (उस को) विपत्ति सुनाई कि ( पद्मावती) बहुत विकल है, कुछ कहा नहीं जाता। (घट के भीतर से ) प्राण को निकाल कर हाथ में ले कर बैठी है, (और कहती है कि राजा रत्न-सेन ) मरे तो मैं भी मरूं (और जौवे तो)