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२६८ - २७०] सुधाकर-चन्द्रिका। ५८३ ( राजा रत्न-सेन के पक्ष पर) हैं (और अब) निश्चय से पार्वती भी (राजा के पक्ष पर) हुई (तो फिर ) ये परदेशी (योगी लोग) क्यों (हार मान कर राजा गन्धर्व-सेन के सामने ) शिर झुका। (पार्वती बडे श्राग्रह से कहने लगी कि हे नाथ ) सुनो मरने समय भौ तुम्हारा ही नाम ले रहा है, सो आप चुप अर्थात् मौन व्रत धारण किए हो ( ऐसी बेरा में श्राप को यह उचित नहीं कि मौन-व्रत धारण करें ॥) (ये गन्धर्व-सेन के सिपाही) परदेशी (योगिऔं) को मारते हैं, इस बेरा (दून योगिनी को) रख लेत्रो अर्थात् बचा लेओ, (दूस अवसर में ) कोई किसी (योगी) का नहीं है जो कि निवारण करने वाला हो, अर्थात् ऐसा कोई श्राप के सेवाय दूसरा नहीं देख पडता जो कि दूस अवसर में दून यो गिओं का प्राण बचावे ॥ २६८ ॥ चउपाई। लैइ सँदेस सुअटा गा तहाँ। सूरौ देन गए लेइ जहाँ ॥ देखि रतन हौरामनि रोगा। रतन ग्यान ठगि लागन्ह खोबा ॥ देखि रोदन हीरामनि केरा। रोअहिँ सब राजा मुख हेरा ॥ माँगहिँ सब बिधिना पहुँ रोई। करु उपकार छोडावइ कहि सँदेस सब बिनति सुनाई। बिकल बहुत किछु कहा न जाई ॥ काढि परान बइसि लेइ हाथा। मरइ तो मरउँ जिअउँ तेहि साथा ॥ सुनि सँदेस राजा तब हँसा। प्रान प्रान घट घट मँह बसा॥ कोई॥ दोहा। होरामनि अउ भाट दसउँधौ भए जिउ पर एक ठाउँ। चलहु जाइ कह बतकही जहाँ बइठु हहिँ राउ ॥ २७० ॥ लेदू = लेदू = पालाय = ले कर। संदेस = सन्देश = संदेसा = खबर । सुअटा- प्राक = सुग्गा । गा= अगात् = गया। तहाँ तत्र । सूरी= शूलौ । देन = देने । गए = जग्मुः । जहाँ = यत्र । देखि = देख कर = दृष्ट्वा । रतन = = रत्न-सेन । होरामनि हीरामणि शक । रोत्रा = रुरोद =रोया। ग्यान = ज्ञान । ठगि = स्थगित्वा ठग कर। लोगन्ह = लोग (लोक) का बहु-वचन। खोत्रा = खोअर का भूत काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन। रोदन = रोदन = रोना । केरा = का। रोहि = रुदन्ति = रोते हैं।